द्रोण शिष्यों का द्रुपद से सामना : हस्तिनापुर के राजकुमारों की सेना और पांचालराज द्रुपद की सेना आमने-सामने थी। दोनों ओर से तीव्र वेग के

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द्रोणाचार्य की आज्ञा : युधिष्ठिर और अन्य शिष्यों ने द्रोणाचार्य से बारम्बार गुरु-दक्षिणा के लिए आग्रह किया तो वे बोले, ‘प्रिय शिष्यो! यदि तुम्हारी यही

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बंदी द्रुपद का द्रोणाचार्य से सामना : द्रुपद को बंदी अवस्था में ले जाकर आचार्य द्रोण के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया गया। “पांचालराज महाराज द्रुपद!”

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द्रोण और द्रुपद का मैत्री-वैर

द्रोण और द्रुपद का मैत्री-वैर : “द्रुपद! आज तुम मेरे बंदी हो। सम्पूर्ण पांचाल राज्य पर तुम्हारा नहीं मेरा अधिकार है,” द्रोणाचार्य ने व्यंग्यभरे स्वर

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द्रोणाचार्य से प्रतिशोध का निश्चय

द्रोणाचार्य से प्रतिशोध का निश्चय : पांचालराज द्रुपद को उनका राज्य लौटाकर द्रोणाचार्य समझ रहे थे कि उन्होंने वैर का अंत कर दिया, किंतु यह

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द्रुपद की पुष्टि यज्ञ की इच्छा

द्रुपद की पुष्टि यज्ञ की इच्छा : पांचालराज द्रुपद ने अपने हितैषियों की सलाह को यथेष्ट सम्मान दिया और पुत्रेष्टि यज्ञ के आयोजन की तैयारी

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धृष्टद्युम्न का जन्म

धृष्टद्युम्न का जन्म : याज्ञिक याज के मंत्रोच्चारण के साथ पुत्रेष्टि यज्ञ आरम्भ हुआ। ज्यों-ज्यों मंत्रोच्चारण के साथ हवनकुंड में आहुतियां डाली जाने लगीं, यजमान

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