दिव्य पदार्थों का उदय : भगवान विष्णु द्वारा धीरज बंधाने पर सभी सुर-असुरों का आत्मबल बढ़ गया। वे दूने । उत्साह से मंदराचल को घुमाने
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ऐरावत और कालकूट विष : समुद्र-मंथन फिर शुरू हो गया। इस बार तीव्र गति से मंथन किया जा रहा था। कुछ समय बाद समुद्र से
अंग्रेजो भारत छोड़ो : जुलाई 1942 में कांग्रेस कार्यकारिणी की एक बैठक वर्धा में हुई। उसमें विचार हुआ कि द्वितीय । विश्वयुद्ध में स्वराज्य पाने
शिव द्वारा विषपान शिव द्वारा विषपान : भगवान विष्णु ने देव-दानवों की परेशानी समझते हुए स्वयं कालकूट विष का पात्र अपने हाथों में थाम लिया
अमृत कलश अमृत कलश : शिव द्वारा कालकूट विष पान कर लेने से भू-मण्डल पर जो त्राहि-त्राहि मच गई थी, शांत हो गई। देव-दानव फिर
विष्णु का मोहिनी रूप विष्णु का मोहिनी रूप : काफी देर तक देव-दानव जब लड़ते-लड़ते थक गए तो भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया
सुर-असुर युद्ध सुर-असुर युद्ध : भगवान विष्णु के मोहिनी रूप का भेद खुलते ही असुरगण बौखला गए। वे तरह-तरह के भयानक शस्त्र लेकर देवताओं की
पक्षीराज गरुड़ और भगवान विष्णु पक्षीराज गरुड़ और भगवान विष्णु : सतयुग में दक्ष प्रजापति की दो कन्याएं थीं-कद्रू और विनता। उनका विवाह कश्यप ऋषि
शेषनाग और भगवान विष्णु शेषनाग और भगवान विष्णु : भगवान विष्णु ने गरुड़ को उसी दिन से अपना वाहन बना लिया। तभी से गरुड़ को
भगवान विष्णु और भक्त ध्रुव भगवान विष्णु और भक्त ध्रुव : राजा उत्तानपाद की गोद में उनकी प्रिय रानी सुरुचि का पुत्र उत्तम बैठा था।
विष्णु भक्त प्रह्लाद की कथा विष्णु भक्त प्रह्लाद की कथा : महर्षि कश्यप की पत्नी दिति के गर्भ से हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष नाम के दो
विष्णु द्वारा प्रह्लाद की रक्षा विष्णु द्वारा प्रह्लाद की रक्षा : प्रह्लाद को उसके समार्ग और विष्णु भक्ति से विचलित करने तथा अपने आपको ही
हिरण्यकशिपु की तपस्या हिरण्यकशिपु की तपस्या : हिरण्यकशिपु अब अपना उद्देश्य साधने के लिए ब्रह्मा की कठोर तपस्या करने लगा। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर
प्रह्लाद को विष्णु भक्ति से विमुख करने का प्रयास प्रह्लाद को विष्णु भक्ति से विमुख करने का प्रयास : प्रह्लाद को सामने देखकर हिरण्यकशिपु बोला,
शुक्राचार्य द्वारा प्रह्लाद को समझाना शुक्राचार्य द्वारा प्रह्लाद को समझाना : हिरण्यकशिपु और प्रह्लाद अर्थात पिता और पुत्र के मध्य बढ़ते हुए वैमनस्य को देखकर