सप्तऋषियों की शरण में डाकू रत्नाकर : डाकू रत्नाकर वापस सप्तऋषियों के पास आया और अपने शस्त्र फेंककर उनके चरणों में गिर पड़ा। आंखों में
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डाकू की साधना और वाल्मीकि नाम पड़ना : डाकू रत्नाकर ने सप्तऋषियों के बताए अनुसार माता सरस्वती का आह्वान किया और पद्मासन लगाकर ‘मरा मरा’
देवर्षि नारद द्वारा वाल्मीकि ऋषि को उपेदश देना : वाल्मीकि ऋषि ने स्नान-ध्यान किया और देवर्षि नारद ने उन्हें केसरिया अंग वस्त्र प्रदान किए। केशों
महाकाव्य ‘रामायण’ : श्रीनारद जी ने बीज रूप में वाल्मीकि को श्रीराम का चरित्र सुनाया और आशीर्वाद देकर चले गए। वाल्मीकि मुनि ने श्रीरामचरित्र का
देवताओं की प्रार्थना : अयोध्यापति महाराज दशरथ की इस घोषणा से कि श्रीराम राजा बनेंगे, समूची अयोध्या प्रसन्नता के अतिरेक में बहने लगी। अगर बेचैनी
कैकेई की बुद्धि का हरण : न चाहते हुए भी लोक कल्याण के लिए मां सरस्वती ने पहले मंथरा को और फिर कैकेई की बुद्धि
महामूर्ख काली और विद्वान ब्राह्मण : संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान महाकवि कालिदास प्रारंभ में निपट मूर्ख थे। एक बार वे एक पेड़ की डाल
अहंकारी राजकुमारी विद्योत्तमा : उज्जैन की राजकुमारी विद्योत्तमा को अपने ज्ञान पर बड़ा अहंकार था। उसने घोषणा कर रखी थी कि जो भी व्यक्ति उसे
बड़ा वही है, जिस पर मां सरस्वती की कृपा है : शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ। राजकुमारी ने अपने हाथ की एक उंगली को कालिदास की ओर
राजा की शंका का समाधान : महल में पहुंचकर महाराज ने पूछा, “पुत्री ! तुमने क्या प्रश्न किए और उसने क्या उत्तर दिए ?” राजकुमारी
कालिदास की साधना : खूब धूम-धाम से कालिदास और विद्योत्तमा का विवाह हो गया। पहले ही दिन कालिदास की मूर्खता का पता राजकुमारी विद्योत्तमा को
कालिदास की वापसी : मां सरस्वती की अपार कृपा से सराबोर हो कालिदास वापस विद्योत्तमा से मिलने आए। वे विद्योत्तमा के प्रति कृतज्ञ थे। क्योंकि
नवरत्नों में एक विशिष्ट रत्न : फिर विद्योत्तमा के पास कालिदास रहे या नहीं इसका पूर्ण विवरण तो ग्रंथों में नहीं मिलता। लेकिन विद्वानों द्वारा
मां सरस्वती से क्षमा याचना : एक कथा के अनुसार एक बार महाकवि दंडी को राजकवि घोषित किया गया। इसमें मां सरस्वती की साक्षात स्वीकृति
धन्ना भक्त की कथा : उपासना की नींव है ‘ श्रद्धा’ । जहां श्रद्धा होती है, वहीं सिद्धि होती है। निरंतर साधना से सिद्धि प्राप्त