Bhagwan ka Nyay भगवान का न्याय
Bhagwan ka Nyay भगवान का न्याय : एक दिन वार्तालाप को दौरान बादशाह अकबर ने बीरबल से एक प्रश्न किया। वह बोले ” बीरबल, हम सभी भगवान की न्यायशील एवं दयावान कहते हैं। परंतु मैं देखता हूँकि यह सच नहीं है। इस संसार में अनेक प्रकार को लोग रहते हैं। कुछ बहुत निधन हैं, ताँ कुछ बहुत धनी; कुछ स्वस्थ हैं, तो कुछ रोगी; कुछ बहुत निर्बल हैं, तो कुछ बलशाली। यदि भगवान पिता है, तो सभी मनुष्य उसकी संतान हैं। उसे सबके साथ समान व्यवहार करना चाहिए। अपनी ही संतानों को वह दो दृष्टि से क्यों देखता है? आखिर वह अपनी ही संतानों में भेद-भाव क्यों दर्शाता है?” बीरबल कुछ देर सोच में पड़ गए फिर उन्होंने कहा “महाराज, यदि भगवान ऐसा न करे, तो कोई भी उसकी प्रार्थना न करे। आप हमारे राजा हैं और प्रजा के लिए पिता समान हैं। आपने स्वयं भी अपने पास अनेक लोगों को नौकर रखा हुआ है, जिन्हें आप समय-समय पर इनाम देते रहते हैं। किसी को ईनाम में पाँच मुद्राएँ, किसी को सौ और किसी को हजारों तक मिलती हैं। आप ऐसा क्यों करते हैं?” बादशाह अकबर बीरबल के इस प्रश्न से घबरा गए।
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वह बीरबल के इस प्रश्न का जवाब सोचने लगे, परंतु उन्हें कोई उचित जवाब नहीं सूझा। तब बीरबल ने आगे कहा, “महाराज, आप काम के आधार पर ही अपने सेवकों को धन अथवा इनाम देते हैं। जो ज्यादा मेहनत करता है उसे ज्यादा देते हैं तथा जो कम मेहनत करता है उसे कम। क्या इसे अनुचित कहना सही होगा? यदि कोई सेवक गलती करता है, तब आप उसे डाँटते हैं या उसके वेतन से कुछ मुद्राएँ काट लेते हैं। यदि सबको समान रूप से वेतन दिया जाए, तो कोई कार्य सही नहीं होगा। भगवान उनकी मदद करता है, जो मेहनती होते हैं तथा सदैव उसका ध्यान करते हैं। वह उन्हें किसी प्रकार की हानि नहीं होने देता। वह उसे बहुत प्रिय होता है परन्तु की जाने वाली मेहनत सच्ची और छल-कपट से रहित होनी चाहिए। आप जरा सोचकर देखिए। चोर-डकैत जब अपने काम पर निकलते हैं तो वे अपनी जान हथेली पर लेकर निकलते हैं। जिस समय जन-सामान्य अपने बिस्तर पर चैन की नींद ले रहा होता है, उस समय वे अपनी आजीविका की तलाश में भटक रहे होते हैं। फिर भी भगवान की दृष्टि में यह मेहनत किसी सूरत में मेहनत नहीं। ऐसे व्यक्ति को भगवान दंड देता है। जो व्यक्ति नेकी के रास्ते पर चलते हुए मेहनत करता है भगवान उसे इनाम देता है। कार्य के आधार पर इनाम पाते–पाते जबकि अन्य लोग कार्य न करने पर गरीब रह जाते हैं। यह व्यक्ति की खुद की करनी होती है। भगवान इसमें कुछ नहीं कर सकता।” बादशाह अकबर बीरबल के इस तक को भली प्रकार समझ गए। उन्होंने बीरबल के इस चतुराई भरे उत्तर की प्रशसा की।
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