बन्दर और चिडिया | Bandar Aur Chadiyaa : किसी वन में एक शमी का वृक्ष था। उसकी लम्बी शाखाओं में चटक नामक चिड़िया ने अपना घोंसला बना रखा था। हेमन्त ऋतु में वहां वर्षा शुरू हुई। ठंडी हवा के झोंकों से सर्दी बढ़ गई। तभी ठंड से कांपता हुआ एक बंदर शमी वृक्ष की छाया में आकर बैठ गया। चटक चिड़िया ने उससे कहा-‘अरे भाई, तुम्हारी आकृति तो पुरुष के समान है। पुरुषों की तरह तुम्हारे हाथ-पैर भी हैं, फिर ठंड से क्यों कांप रहे हो ? अपने रहने के लिए घर क्यों नहीं बना लेते ?’ यह सुनकर बंदर को क्रोध आ गया और बोला-‘अरी ओ चूं-चूं की बच्ची! तू खामोश क्यों नहीं रहती ? मेरे साथ धृष्टता करती है?
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बन्दर और चिडिया | Bandar Aur Chadiyaa : मज़ाक उड़ाती है मेरा ? चुपचाप पड़ी रह। मेरी चिंता मत कर।’ जब चटक चिड़िया फिर भी नहीं मानी और अपने घोंसले में बैठकर अपनी बात फिर दोहराई, तो बंदर ने चिढ़कर शमी वृक्ष पर बने उसके घोंसले को नष्ट कर दिया | यह कथा सुनाकर करटक ने दमनक से कहा-तुम भी ऐसे ही मूर्ख हो। तुम्हें उपदेश देने से भी कोई लाभ नहीं। दुष्ट व्यक्ति अपने विनाश से उतना दुखी नहीं होता जितना कि वह दूसरों को सुखी देखकर होता है। दुष्टों का यह स्वाभाविक गुण है। धर्मबुद्धि और पापबुद्धि को मैं भली – भांति जानता हूं। उनमें से पापबुद्धि ने ही अपने पिता को मार डाला था।’। दमनक ने पूछा-‘वह किस प्रकार?’ करटक बोला – ‘सुनाता हूं, सुनो।’
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