Badshah Akbar ka Mahabharat | बादशाह अकबर का महाभारत
Badshah Akbar ka Mahabharat | Akbar Birbal Stories in Hindi : बीरबल एक बार बादशाह अकबर के कक्ष में एक भारी पुस्तक लेकर पहुँचे। पूछने पर बीरबल ने अकबर को बताया कि यह हिन्दुओं का एक पवित्र ग्रंथ ‘महाभारत’ है। अकबर के मन में उसे पढ़ने की इच्छा जाग उठी, इसलिए बीरबल ने ‘महाभारत’ को अकबर के पास छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद अकबर ने बीरबल को बुलाया और कहा “बीरबल, मैंने यह ‘महाभारत’ शुरू से आखिर तक पढ़ लिया है। मुझे तो यह बहुत महत्वपूर्ण ग्रंथ लगा है। इसको पढ़ने के बाद मैं एक ‘अकबरी महाभारत’ लिखवाना चाहता हूँ। इसे लिखने के लिए तुम्हें जितनी भी मुद्राएँ चाहिएँ, तुम ले सकते हो। ” बीरबल, महाराज की इस विचित्र इच्छा को सुनकर परेशान हो गया, क्योंकि उनकी यह इच्छा कभी-भी पूरी नहीं की जा सकती थी। फिर भी बीरबल ने कहा “क्यों नहीं, महाराज! यह अवश्य पूरा होगा। परंतु इसके लिए मुझे दो महीने का समय और पचास हजार स्वर्ण मुद्राएँ चाहिएँ।” “मैं तुम्हारी सभी माँगें पूरी करूंगा, बीरबल।” बादशाह ने कहा। बीरबल परेशानी की हालत में सोचते हुए वहाँ से चला गया “महाभारत तो एक पवित्र ग्रंथ है, जिसे एक महान् संत ने लिखा था। ‘अकबरी महाभारत’ को कैसे बनाया जाए? अगर किसी तरह प्रयत्न भी किया जाए तो प्रजा में बहुत बुरा वैमनस्य फैल जाएगा, क्योंकि बादशाह का चरित्र किसी एक धर्म पर अटल नहीं है। अगर इसके हिन्दू पक्ष को उजागर किया जाएगा, तो मुसलमान जनता विरोध करेगी और अगर इसके मुसलमान पक्ष को उजागर किया. ” सोचते-सोचते उसके दिमाग में एक उपाय आया।
उसने कुछ मुद्राओं से कागज की रद्दी खरीदी और बाकी मुद्राओं को निर्धनों, ब्राह्मणों, साधू -संतों तथा मौलवी-मुल्लाओं को दान दे दिया। दो महीने आराम करने के बाद स्वस्थ एवं तरोताजा होकर बीरबल दरबार में पहुँचा। उसको देखते ही अकबर ने पूछा “बीरबल, मैंने तुम्हें ‘अकबरी महाभारत’ लिखने के लिए कहा था। जो समय और धन तुमने माँगा, वह बिना किसी विरोध के तुम्हें दिया गया। अब तुम मुझे यह बताओ कि इस विषय में तुमने क्या किया?” ‘महाराज, इस विषय पर काम बड़ी लगन के साथ चल रहा है। उच्च कोटि के दस विद्वान् ब्राह्मण उसे लिखने में व्यस्त हैं। यदि |और दे दें, तो मैं पाँच और विद्वान् ब्राह्मणों को इस कार्य में लगा ट्रॅगा, जिससे काम जल्दी समाप्त हो जाएगा।” बीरबल ने कहा। अकबर ने उसकी बात मान ली।
बीरबल ने एक महीने का समय और ले लिया।
महीने के अंतिम दिनों में बीरबल ने रद्दी कागजों को इकट्ठा करको एक भारी पुस्तक का रूप दे दिया। वह उसे दरबार में ले गया और बोला “महाराज, आपकी ‘अकबरी महाभारत’ तैयार हो गई है, परंतु आपको दिखाने से पूर्व मुझे महारानी की सलाह की आवश्यकता है।” बादशाह की आज्ञा पाकर बीरबल महारानी के पास गया और बोला, ‘महाराज ने ‘अकबरी महाभारत’ लिखने का आदेश दिया था। मैंने इसे बहुत विद्वान व्यक्तियों द्वारा लिखवाया है। मैं इसे आपको दिखाने के लिए लाया हूँ।” “ओह, यह तो बहुत अच्छा है।” रानी ने हैरान होते हुए कहा। “परंतु, महारानी, इसमें एक समस्या है।” “हाँ, कहो, हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर सकूं ।” महारानी ने कहा। ‘महारानी, आप जानती होंगी कि महाभारत में द्रौपदी के पाँच पति थे। जैसा कि आपको पता है, आप भी इस महाभारत की एक पात्र हैं, तो आपके भी पाँच पति हैं। जिस प्रकार द्रौपदी के साथ दुशासन ने राजदरबार में चीर-हरण किया था, ठीक उसी प्रकार, इस पुस्तक के आधार पर आपके साथ भी? “चुप रहो, बीरबल! तुम्हारी ऐसा कहने की हिम्मत कैसे हुई? मैं ऐसा कुछ भी नहीं सुनना चाहती।” रानी ने गुस्से में कहा। का आदेश है कि ‘अकबरी महाभारत’ को वास्तविक महाभारत को अनुरूप ही होना चाहिए.”। नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। मुगल वंश के किसी पात्र के चरित्र को किसी भी तरह से भ्रष्ट नहीं दिखाया जा सकता। लाओ यह पुस्तक मुझे दो। मैं इसे अभी जला दूँगी।” बीरबल ने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ। रानी ने अपनी सेविका को पुस्तक जलाने का आदेश दे दिया। इसको पश्चात् बीरबल चुपचाप वहाँ से खिसक गया और जाकर बादशाह को सब कुछ बता दिया।
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यह सुनकर बादशाह बहुत क्रोधित हुए और रानी के महल की ओर चल दिए। जब तक वह वहाँ पहुँचे, तब तक ‘अकबरी महाभारत’ रूपी रद्दी जलकर राख हो चुकी थी। पूछे जाने पर रानी ने ‘अकबरी महाभारत’ को जला देने का कारण बताया। कारण सुनकर अकबर भौचक्के रह गए। उन्होंने रानी से वायदा किया कि मुगल साम्राज्य में कभी-भी ‘महाभारत’ नहीं लिखी जाएगी। बाद में बीरबल ने वह सब स्वीकार कर लिया, जो उसने मुद्राओं और रद्दी कागज के साथ किया था। बादशाह ने बीरबल की ईमानदारी और बुद्धिमानी के लिए उसे पुरस्कृत किया।
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