बड़े नाम का वर्णन | Bade Naam Ka Varnan
बड़े नाम का वर्णन | Bade Naam Ka Varnan : किसी वन में चतुर्दत नाम का एक महाकाय हाथी रहता था। वह अपने दल का मुखिया था। एक बार वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। सूखे के कारण सब झील, ताल, तलैया सूख गए। पानी के अभाव में लोग प्यासे मरने लगे।
तब सब हाथियों ने मिलकर अपने मुखिया से कहा-‘स्वामी ! हमारे बच्चे प्यास से व्याकुल होकर मर गए। जो शेष हैं, वह भी मरने वाले हैं। जल्दी ही पानी का प्रबंध न हुआ तो हम सभी प्यासे मर जाएंगे।’
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बहुत देर सोचने के बाद चतुर्दत ने कहा-‘मुझे एक तालाब याद आया है। वह पाताल गंगा के जल से सदैव भरा रहता है। हमें बहीं चलना चाहिए।’ हाथियों का वह समूह अपने मुखिया के निर्देशन में उस सरोवर की ओर चल पड़ा। दिन में गर्मी और कहीं भी जल उपलब्ध न होने के कारण वे प्राय: रात्रि में ही यात्रा करते थे, इसलिए सरोवर तक पहुंचने में उन्हें पांच दिन लग गए। सारे दिन छोटे-बड़े सभी हाथी उस सरोवर में बैठे जल-क्रीड़ा करते रहे। सांयकाल को सब जल से बाहर निकले और सरोवर के निकट उगे हरे-हरे पेड़ पौधों को अपना आहार बनाने लगे|
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बड़े नाम का वर्णन | Bade Naam Ka Varnan : उस सरोवर के चारों ओर खरगोशों के बिल बने हुए थे। हाथियों के विचरण से बिल तहस-नहस हो गए। बिल में रहने वाले खरगोशों में से अधिकांश हाथियों के पांवों तले दबकर परलोक सिधार गए। जीवित और अधमरे जितने भी खरगोश थे, सब एक जगह इकट्ठे हुए और इस बिन-बुलाई मुसीबत के बारे में विचार-विमर्श करने लगे। उनमें से अधिकांश की राय यही थी कि जब हाथियों ने एक दिन में ही हमारे इतने साथी मार डाले तो आगे के एक-दो दिनों में हमारा समूल नाश ही हो जाएगा। उनमें से एक ने कहा-‘साथियो ! हमारा भला इसी में है कि हम तत्काल इस स्थान को छोड़कर कहीं अन्यत्र अपना ठिकाना बना लें।’ उसकी बात सुनकर दूसरे खरगोश बोले कि पूर्वजों के समय से चले आ रहे अपने निवास-स्थल को हमें सहसा इस प्रकार नहीं छोड़ना चाहिए। अच्छा हो कि किसी प्रकार इन हाथियों को भगाने का उपाय करें।
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बड़े नाम का वर्णन | Bade Naam Ka Varnan : उसकी बात सुनकर उनमें से एक बूढ़ा खरगोश बोला-‘यह कार्य तो हमारा चतुर दूत ही कर सकता है। हमारा स्वामी चंद्रमा चंद्रमंडल में निवास करता है अत: अपने स्वामी की ओर से कोई दूत बनाकर हाथियों के मुखिया के पास भेजा जाए, जो उसे यह विश्वास दिलाने में समर्थ हो कि हम चंद्रवंशी हैं और हमारे राजा चंद्रदेव उन हाथियों को यहां आने की स्वीकृति नहीं देते। संभव है कि इस पर विश्वास करके वह हाथियों का मुखिया अपने दल को लेकर यहां से अन्यत्र स्थान को चला जाए।’ यह सुनकर एक अन्य खरगोश बोला-‘यदि ऐसी बात है तो लम्बकर्ण इस कार्य के लिए उपयुक्त व्यक्ति है। वह दूतकार्य में निपुण है, उसी को वहां भेजा जाए।’ सभी ने उसकी बात पर सहमति व्यक्त कर दी। लम्बकर्ण चंद्रमा का दूत बनकर हाथियों के मुखिया के पास पहुंचा। वहां पहुंचकर वह एक ऊंची जगह पर चढ़ गया और जोर से बोला-‘मैं लम्बकर्ण नाम का खरगोश हूं। चंद्रमंडल में निवास करता हूं और मुझे महाराज चंद्रदेव ने दूत के रूप में तुम्हारे पास भेजा है।’ ‘चन्द्रदेव ने क्या संदेश भेजा है मेरे लिए ?’
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बड़े नाम का वर्णन | Bade Naam Ka Varnan : ‘सुनो गजराज। कल तुमने अपने समूह के साथ यहां आकर अनेक खरगोशों का वध कर डाला है। उनमें चंद्रदेव के परिवारजन भी हैं। भगवान चंद्रदेव तुमसे बहुत अप्रसन्न हैं। उन्होंने कहा है कि यदि तुम सब जीवित रहना चाहते हो तो यहां से तुरंत अन्यत्र प्रस्थान करो।’ देने के लिए वे इसी जलाशय में विराजमान हैं।’ ‘यदि ऐसी बात है तो तुम मुझे उनके दर्शन करा दो, मैं उन्हें प्रणाम कर यहां से चला जाऊंगा।’ चतुर्दत ने कहा। ‘ठीक है, तुम मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें उनके दर्शन करवा देता हूं।’ कहते हुए लम्बकर्ण उसे सरोवर के निकट ले गया। उसने जल में पड़ रहे चंद्रमा के प्रतिबिम्ब को दिखाकर कहा-‘महाराज चंद्रदेव इस समय जल में समाधि लगाकर बैठे हुए हैं। तुम बिना उनसे कुछ कहे उनके दर्शन कर लो और चुपचाप यहां से चले जाओ।
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बड़े नाम का वर्णन | Bade Naam Ka Varnan : यदि तुम्हारी आहट से उनकी समाधि भंग हो गई तो वे और भी क्रोधित हो जाएंगे । ” तब भयभीत हाथी-दल के मुखिया चतुर्दत ने दूर से ही चंद्रमा की प्रणाम किया और फिर कभी उस स्थान पर न आने का आश्वासन देकर अपने समूह से प्रस्थान क्र र गया | यह कहानी सुनाकर कौए ने कहा-‘इसलिए मैं कहता हूं कि कभी-कभी बड़े लोगों के नाम लेने मात्र से ही कार्यसिद्धि हो जाया करती है। यदि तुम उल्लू जैसे राजा बनाओगे तो उस खरगोश और कपिंजल की तरह ही नष्ट हो जाओगे। ”
पक्षियों ने पूछा-‘खरगोश और कपिंजल की क्या कथा है ?’ कौआ बोला-‘सुनाता हूं, सुनो।’
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