अंत – अधासुर का | Ant – Adhasur ka : अपने भाई बकासुर की मृत्यु की सूचना पाकर अधासुर क्रोध से भर गया. बकासुर उसका भाई था और वह अपने भाई की मृत्यु का बदला कृष्णा को मार कर लेना चाहता था. एक दिन वह उस स्थान पर पहुंचा, जहाँ कृष्ण, बलराम तथा अन्य चरवाहे बालक खेलने में व्यस्त थे. उनके पशू पास में ही चर रहे थे. अधासुर ने एक विशाल सर्प का रूप धारण कर लिया. जब वह अपना मुहँ खोलता था, तब उसका निचला जबड़ा आकाश को छूता था. अधासुर अपना मुहँ खोलकर जंगल के रास्ते में बैठ गया तथा उसने अपने लम्बी लाल जीभ जमीन परे लाल कालीन के समान बिछा दी। अंजान बच्चे खेलते-खेलते अधासुर के निकट आ गए।
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शीघ्र ही सभी खेलते-खेलते अधासुर के मुँह में प्रवेश कर गए। अधासुर तब तक प्रतीक्षा करता रहा, जब तक कृष्ण व बलराम ने उसके मुँह में प्रवेश नहीं किया। अन्त में कृष्ण व बलराम भी वहाँ आ गए और वह भी उसके मुँह में घुस गए। पर इससे पहले कि वह उन्हें निगलने के लिए अपना मुँह बंद करता, कृष्ण ने अपना आकार लम्बा व चौड़ा करना आरम्भ कर दिया।”, शीघ्र ही कृष्ण ने इतना विशाल स्वरूप कर लिया कि वह अधासुर के मुँह में फंस गए। अब अधासुर न ही सही तरह से साँस ले पा रहा था और न ही अपना मुँह बंद कर पा रहा था।
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कुछ ही समय बाद साँस घुटने के कारण अधासुर की मृत्यु हो गई। अभी वह सर्प रूप में ही था और मूछित पड़ा था अब उस सर्प का मुँह एक गुफा के समान हो गया। सभी बच्चे अधासुर के मुँह से बाहर आ गए और उन्हें कुछ भी पता न चला।
इस प्रकार श्रीकृष्ण ने एक और राक्षस का अन्त किया और स्वयं को तथा संसार को बुराई से बचाया।
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