अच्छी सलाह को मत करो नज़रंदाज़ | Acchi Salah Ko Mat Karo Nazarandaz

अच्छी सलाह को मत करो नज़रंदाज़ | Acchi Salah Ko Mat Karo Nazarandaz :  किसी धोबी के पास एक गधा था। गधा बूढ़ा हो चुका था। दिनभर तो वह धोबी के कपड़े ढोया करता और रात होने पर जब उसका मालिक उसे खुला छोड़ देता, तो वह मनमाने ढंग से इधर-उधर घूमा करता। सुबह होने पर वह स्वयं ही धोबी के घर पहुंच जाता था।

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एक रात उस गधे की मुलाकात एक गीदड़ से हो गई। दोनों साथ – साथ रहने लगे। शीघ्र ही दोनों में मित्रता हो गई। गधे के साथ अब गीदड़ भी खेतों में जाने लगा। गधे ने एक किसान की बाड़ी में ककड़ियां, तरबूज आदि लगे हुए देख लिए थे। वह रात को चुपके हैं से बाड़ी में पहुंचता और पेटभर कर स्वादिष्ट ककड़ियों का आनंद उठाता। जब गीदड़ से मित्रता हो गई तो वह गीदड़ को भी अपने साथ ले जाने लगा। कई दिनों तक दोनों का यही – क्रम चलता रहा।
एक रात गधे ने पहले तो पेट मस्ती सूझने लगी। वह गीदड़ से बोला –‘मित्र देखो ! आज कितनी सुहावनी रात है। चंद्रमा चमक रहा हैं। है, ठंडी – ठंडी हवा बह रही है।

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अच्छी सलाह को मत करो नज़रंदाज़ | Acchi Salah Ko Mat Karo Nazarandaz :  खेतों से कितनी मीठी – मीठी सुगंध उठ रही है। ऐसे में मेरा मन गाने को कर रहा है।’ ‘नहीं मित्र! ऐसा अनर्थ मत करना।” गीदड़ जल्दी से बोला – ‘बेकार ही आपत्ति को निमंत्रण नहीं देना चाहिए। हम यहां चोरी करने आए हैं। चोरों और व्यभिचारियों को तो स्वयं को छिपाकर ही रखना चाहिए। वैसे भी तुम्हारी आवाज बहुत रूखी है। खेत के मालिक ने सुन लिया, तो वह जान जाएगा। फिर या तो तुम्हें बांध देगा या पीट – पीट कर मार डालेगा। बेकार के गायन के चक्कर में मत पडो।’ गधा अकड़कर बोला – ‘तुम तो जंगली हो, तुम्हें भला संगीत का ज्ञान कहां?’ “शायद तुम ठीक कहते हो।’ गीदड़ बोला – ‘किंतु गाना तुम्हें भी कहां आता हे. मित्र !’ गीदड़ के बार-बार समझाने पर भी जब गधा नहीं माना, तो गीदड़ बोला – ठीक है मित्र! तुम गाना चाहते हो तो शौक से गाओ, लेकिन कुछ देर बाद गाना। तब तक मैं खेत की मेंड पर बैठकर खेत के मालिक पर नजर रखता हूँ।’

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अच्छी सलाह को मत करो नज़रंदाज़ | Acchi Salah Ko Mat Karo Nazarandaz :  गीदड़ खेत से बाहर निकल आया और एक सुरक्षित स्थान पर आकर बैठ गया। गीदड़ के जाते ही गधे ने रेंकना शुरू कर दिया। उसकी डेंचू – ढ़ेंचू की आवाज सुनकर खेत का मालिक जाग गया। वह लाठी उठाकर गधे की ओर दौड़ पड़ा। उसने क्रोध में आकर गधे की पीठ पर इतनी लाठियां बरसाई कि गधे की पीठ टूट गई और वह भूमि पर गिरकर लंबी – लंबी सांसें लेने लगा।

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किसान ने उसके गले में एक भारी – सी ऊखल बांध दी और वापस जाकर आराम से सो गया। किसान के जाते ही गधा उठा और लंगड़ाता हुआ मार की पीड़ा झेलता हुआ किसी तरह ऊखल लटकाए खेत से बाहर निकल आया। उसकी ऐसी हालत देखकर गीदड़ खिल – खिलाकर हंस पड़ा। बोला – ‘वाह मित्र, वाह! तुम्हारे गायन से खुश होकर किसान ने कितना शानदार पुरस्कार इनाम में दिया है।’
‘अब और शर्मिदा मत करो मित्र’, गधे ने झंपते हुए कहा – ‘मैंने तुम्हारी सलाह नहीं मानी, उसी की यह सजा मुझे मिली है। अब से भविष्य में यदि कोई अच्छी सलाह देगा, तो मैं उस पर जरूर अमल करूंगा।’

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