प्रकृति दिवस पर सृष्टिदेवी की कहानी | Prakriti Diwas Par Shristi Devi Ki Kahani
प्रकृति दिवस पर सृष्टिदेवी की कहानी | Prakriti Diwas Par Shristi Devi Ki Kahani : कल रात मैं ने एक स्वप्न देखा, उस स्वप्न में मैं ने सृष्टि देवी को देखा जैसे ही मैं ने सृष्टि देवी को देखा तो मैं ने उन्हें प्रणाम किया और मेरे प्रणाम करते ही उनकी आँखों में अश्रुधारा बहने लगी और जब मैंने उनसे उस अश्रुधारा का कारण पूछा तो उन्होंने अपनी मन की व्यथा मुझे बताई उसी व्यथा को कुछ शब्दों की पंक्तियों में पिरोकर मैं आप सभी के सामने सुनना चाहती हूँ. लेकिन उससे पहले समझ लीजिये मैं सृष्टि देवी हूँ और आप सभी मानवो से विनती कर रही हूँ :
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बोल रही हैं सृष्टि देवी यूँ मानव से
बोल रही हैं सृष्टि देवी यूँ मानव से
रे मूढ़ मनुष्य तू डूबा हैं किस अहंकार में,
हम ने तुझे विवेक दिया था
हम ने तुझे विवेक दिया था
फिर भी तू तो मुर्ख निकला
जिस डाली में बैठा पागल उसको ही तू काट रहा हैं.
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जिस थाली में खाता हैं तू उसको ही तू छेद रहा हैं
जिस धरती पर बैठा हैं तू उस पर ही तू थूक रहा हैं
हवा, पेड़, जल, पशु – पक्षी सब
हवा, पेड़, जल, पशु – पक्षी सब
तेरी सेवा में तत्पर हैं ओर उन्ही को दूषित करता, पीड़ित करता शोर मचाता हैं
ऐसा ही करता जाएगा
ऐसा ही करता जाएगा
तो तू कैसे बच पाएगा
तो तू कैसे बच पाएगा
कैसा तेरा ज्ञान बावले, कैसा हैं विज्ञान.
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पर्यावरण दूषित कर डाला
पर्यावरण दूषित कर डाला
अपना नाश कर डाला हैं
अब भी चेत चेत ले मानव
अब भी चेत चेत ले मानव
धरती माँ की सेवा कर ले
जीवन को तो सुख से जी ले.
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