लोभी का नाश | Lobhi Ka Nash

लोभी का नाश | Lobhi Ka Nash

लोभी का नाश | Lobhi Ka Nash : एक स्थान पर हरिदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था। एक बार उसने अपने खेत में एक सर्प को फन उठाए हुए देखा। उसने उस सर्प के बिल के आगे एक पात्र में दूध भरकर रख दिया और उसने प्रार्थना की – देव ! मुझे आपकी उपस्थिति का पता नहीं था, इसलिए आपकी पूजा न कर सका। अब से मैं नित्य प्रति आपकी पूजा करूंगा।’ | दूसरे दिन प्रात:काल जब वह खेत पर आया तो जिस मिट्टी के पात्र में वह दूध रखकर गया था, उस पात्र में उसने एक स्वर्णमुद्रा रखी हुई देखी। तब से वह नित्यप्रति सर्प को दूध पिलाने लगा। सुबह उसे दूध के उस पात्र में एक स्वर्णमुद्रा रखी हुई मिल जाती। एक दिन किसी कार्यवश ब्राह्मण को कहीं बाहर जाना पड़ा। सर्प के लिए दूध रखने का काम वह अपने पुत्र को सौंप गया।

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लोभी का नाश | Lobhi Ka Nash

लोभी का नाश | Lobhi Ka Nash : उसका पुत्र शाम को जाकर बिल के पास उसी तरह दूध रख आया। दूसरे दिन सुबह जब वहां गया तो उसने पात्र में रखी हुई स्वर्णमुद्रा देखी। उसने सोचा कि हो न हो, इस सर्प की बांबी में स्वर्णमुद्राएं भरी हैं, क्यों न इसे मारकर सारे धन को ले लिया जाए ? यही सोचकर उस ब्राह्मण पुत्र ने सर्प को मारना चाहा । लेकिन सर्प बच गया और उसने उस लड़के को काट खाया | लड़का वहीं मर गया | दूसरे दिन जब हरिदत्त वापस आया तो उसके स्वजनों ने उसे सारा वृतांत सुनाया। यह सुनकर हरिदत्त को बहुत दुख हुआ। उसने कहा कि यह अच्छा नहीं हुआ। मेरे पुत्र को ऐसा नहीं करना चाहिए था। शरणागत को कभी मारना नहीं चाहिए। शरणागत की रक्षा न करने वाला व्यक्ति पाप का दोषी बनता है। उसके सभी काम वैसे ही बिगड़ जाते हैं जैसे पद्मसर में रहने वाले हंसों का काम बिगड़ गया था | । स्वजनों ने पूछा-‘वह कैसे ?’ हरिदत्त ने तब उन्हें हंसों की यह कथा सुनाई।

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