सबके भाग्य में कुछ और लिखा हैं | Sabke Bhagya Mein Kuch Aur Likha Hain
सबके भाग्य में कुछ और लिखा हैं | Sabke Bhagya Mein Kuch Aur Likha Hain : दक्षिण के किसी राज्य में पाटलिपुत्र नाम का एक नगर था। उस नगर में मणिभद्र नाम का एक सेठ रहा करता था। सेठ बहुत धर्मात्मा था, किन्तु भाग्य के विपरीत हो। जाने के कारण उसका सारा वैभव समाप्त हो गया। निर्धनता के कारण वह प्रतिदिन दुखी रहने लगा था। एक दिन उसने आत्महत्या का निश्चय कर लिया।
सेठ उस रात जब सोया तो स्वप्न में उसे पद्मनिधि ने जैन भिक्षु के रूप में दर्शन दिए। वह बोले – वत्स ! अपना यह वैराग्य छोड़ दे। तेरे पूर्वजों ने जो धन कमाकर पुण्यकारी कार्यों में खर्च किया था, मैं उसी का संचित प्रतिरूप हूं। कल प्रातः मैं इसी रूप में तेरे घर आऊंगा। उस समय तुम मेरे सिर पर लाठी का प्रहार करना। उस प्रहार से मैं सोने का बन जाऊंगा। तुम वह स्वर्ण पाकर फिर से धनी बन जाओगे। ”
प्रातः जब सेठ की नींद खुली तो वह रात को आए सपने पर विचार करने लगा |
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सबके भाग्य में कुछ और लिखा हैं | Sabke Bhagya Mein Kuch Aur Likha Hain : नित्य की भांति उस दिन भी एक नाई उसके पास पहुंच गया जो उसके बाल, नाखून आदि काटने के लिए आता रहता था।
तभी एक जैन भिक्षु, भिक्षा मांगने के लिए उसके दरवाजे पर पहुंचा। सेठ को तत्काल रात वाले सपने की याद ही आई। वह जैन बिल्कुल वैसा ही था, जैसा उसने सपने में देखा था। प्रसन्न होता हुआ सेठ अंदर पहुंचा और एक उठा लाया। उसने लाठी का एक जोरदार प्रहार जैन भिक्षु के सिर पर किया भिक्षु बिना कुछ बोले भूमि पर गिर गया। गिरते ही उसका शरीर एक सोने मूर्ति में परिवर्तित हो गया। सेठ ने वह सोने की मूर्ति उठाई और जल्दी से घर में सुरक्षित स्थान पर रख आया।
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सबके भाग्य में कुछ और लिखा हैं | Sabke Bhagya Mein Kuch Aur Likha Hain : यह सारी घटना वह नाई भी देख चुका था। बात फैले नहीं, इस विचार से सेठ ने नाई को भेंट-पूजा देकर शांत किया और उसे निर्देश दिया कि यह बात किसी और व्यक्ति से न कहे। नाई उस समय तो संतुष्ट होकर चला गया, लेकिन घर जाकर उसके मन में उथल-पुथल मचने लगी। उसने सोचा, सभी जैन भिक्षु मरकर स्वर्णमूर्ति में परिवर्तित हो जाते हैं। यही सोचकर उसने भी जैन भिक्षुओं को मारकर धन प्राप्त करने का निश्चय कर लिया। वह उसी रात भिक्षुओं के मठ में पहुंचा और कई भिक्षुओं को अपने घर भोजन करने का आमंत्रण दे आया | सुबह जब जैन भिक्षु उसके बुलाने पर उसके घर के द्वार पर पहुंचे तो बजाय भोजन खिलाने के, वह उन पर लाठी लेकर टूट पड़ा। उनमें से कुछ तो वहीं धराशायी हो गए और जो बचे, वे जान बचाकर भाग निकले। उनकी चीख-पुकार सुनकर लोग इकट्टे हो गए।
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सबके भाग्य में कुछ और लिखा हैं | Sabke Bhagya Mein Kuch Aur Likha Hain : किसी ने घटना की सूचना नगररक्षकों को पहुंचा दी तो वे भी वहां आ पहुंचे। नाई बहुत भगा परन्तु उसे फिर भी पकड़ लिया गया। जब राजदरबार ले जाकर नाई से उन जैन भिक्षुओं की हत्या का कारण पूछा गया तो उसने मणिभद्र सेठ के घर हुई घटना के बारे में बता दिया। उसने बताया कि वह भी सेठ की तरह जैन भिक्षुओं को मारकर शीघ्र धनी होना चाहता था। इस पर न्यायाधीश ने मणिभद्र को भी पकड़वाकर न्यायालय में बुलवा लिया। मणिभद्र ने तब अपने सपने वाली कहानी आरम्भ से अंत तक न्यायाधीश के सामने दोहरा दी। मणिभद्र के मुख से सारा विवरण सुनकर न्यायाधीश ने नाई को मृत्युदंड का आदेश दिया और कहा-‘बिना सोचे काम करने वाले के लिए ऐसा ही दंड उचित है। प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि अच्छी तरह जाने, देखे और सुने तथा उसकी परीक्षा लिए बिना कोई भी काम न करें। अन्यथा उसका वही परिणाम होता है जैसा कि अपने पालित नेवले की मृत्यु के पश्चात एक ब्राह्मणी का हुआ था | ” मणिभद्र ने पूछा-‘वह किस प्रकार श्रीमान?’ न्यायाधीश ने तब उसे यह कहानी सुनाई।
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