अनाधिकार चेष्ठा ऐसा ही परिणाम लाती हैं | Anadhikar Cheshtha Aisa Hi Parinaam Lati Hain
अनाधिकार चेष्ठा ऐसा ही परिणाम लाती हैं | Anadhikar Cheshtha Aisa Hi Parinaam Lati Hain : किसी धनी व्यापारी ने नगर की सीमा के पास एक भव्य देवमंदिर बनवाना आरंभ किया. इसके लिए उसने नगर के सर्वश्रेस्ठ कारीगर और राजमिस्त्री आदि नियुक्त किए। दिन भर कारीगर अपने काम पर जुटे रहते, पर दोपहर के समय वे भोजन करने के समय वे भोजन करने के लिए नगर में चले आते।
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एक दिन अकस्मात बंदरों का एक झुंड इधर – उधर घूमता हुआ वहां आ पहुंचा। बंदर तो होते ही हैं चंचल प्रकृति के। वे कारीगरों द्वारा छोड़ी हुई चीजों से छेड़छाड़ करने लगे। कारीगरों में से कोई कारीगर एक आधे चिरे हुए लकड़ी के शहतीर के बीच एक कील गाड़कर चला गया था। उन बंदरों में से एक बंदर कौतूहलवश उस आधे चिरे शहतीर पर जा बैठा और उसमें लगी कील को उखाड़ने का प्रयास करने लगा।
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बंदर को ऐसा करते देख कुछ बंदरों ने उसे कहा टीका – ‘अरे भाई! तुम यह क्या कर रहे हो? उस कील को मत उखाड़ना, नहीं तो चोट खा जाओगे?’ बंदर बोला-‘मैं यह जानना चाहता हूं कि यह कील इस लकड़ी में क्यों गड़ी हुई है?”
बंदर ने कील पर जोर आजमाइश की, तो कील उखड़कर उसके हाथ में आई, पर ऐसा करते ही शहतीर के चिरे हुए दोनों भाग एक दूसरे से जा जुड़े। बंदर के अंडकोश उस चिरे हुए भाग में दब गए और दर्द के कारण वह चीत्कार करने लगा। उसने बहुत प्रयास किया, किंतु अंडकोशों को शहतीर के बीच से न निकाल सका। अंत में तड़प-तड़पकर उसकी मृत्यु हो गई। अनधिकार चेष्टा करने का ऐसा ही परिणाम होता है।
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