गोवर्धन को धारण करने वाला | Gowardhan Ko Dharan Karne Wala
गोवर्धन को धारण करने वाला | Gowardhan Ko Dharan Karne Wala : एक बार ऐसा भी हुआ कि जब भगवान कृष्ण ने अपनी युवावस्था के समय में ब्रजधाम के सभी लोगों को आदेश दिया कि वह सभी भगवान इन्द्र की पूजा करनी छोड़ दें।
ब्रजधाम में सभी लोग कृष्ण का सम्मान करते थे तथा उन्हें प्यार करते थे, इसलिये उन्होंने कृष्ण के कहने पर भगवान इन्द्र की पूजा करना छोड़ दिया। यह देखकर इन्द्रदेव अपने इस अपमान से बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने सोचा,
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‘इन सभी ग्वालों और चरवाहों ने मेरा अपमान करने की हिम्मत की है। इन्हें अपने ऊपर कुछ ज्यादा ही घमंड हो गया है। यह मेरे साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकते हैं? मैं भी इन्हें ऐसा सबक सिखाऊँगा जिसे ये जीवन भर याद रखेंगे।”
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गोवर्धन को धारण करने वाला | Gowardhan Ko Dharan Karne Wala : अत: इन्द्र ने समवर्तक को बुलाया। वे काले घने बादल थे, जो पृथ्वी पर भारी वर्षा करके बाढ़ तथा अन्य दूसरी प्राकृतिक आपदाओं को उत्पन्न करते थे। इन्द्रदेव ने उनसे कहा, “जाओ ब्रजधाम पर जाकर मूसलाधार वर्षा करो। मैं तुम्हारे पीछे-पीछे ऐरावत तथा हाथियों की सेना के साथ आऊंगा.” समवर्तक, काले घने बादलों ने ब्रजधाम पर भयंकर वर्षा की। वहाँ कई दिन तक चारों ओर जोरदार लगातार बारिश होती रही, शीघ्र ही ब्रजधाम में बाढ़ आ गयी। बादलों की गड़गड़ाहट तथा बिजली की चमक से लोगों के हृदय में भय उत्पन्न हो गया। पेड़ अपनी जड़ों से उखड़ गये और जंगली जानवरों ने घरों को हानि पहुँचाना आरम्भ कर दिया। तब इस विपदा से घबराये हुए सभी लोग, कृष्ण के पास सहायता के लिए गये और उससे सहायता के था लिये प्रार्थना की, “हे कृष्ण, केवल आप ही हमें इन्द्र के प्रकोप से बचा सकते हैं। कृपया हमारी रक्षा कीजिए।” “हाँ, मौसम में अचानक यह परिवर्तन इन्द्रदेव की गलत हरकत के कारण हुआ है। वह सभ्य देवताओं की तरह व्यवहार नहीं कर रहे हैं। मुझे उनके झूठे घमण्ड को तोड़ने के लिये अवश्य ही कुछ करना पड़ेगा।”
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गोवर्धन को धारण करने वाला | Gowardhan Ko Dharan Karne Wala : कृष्ण ने कहा। भगवान कृष्ण गोवर्धन पर्वत के पास पहुँचे। सभी हैरान थे कि श्रीकृष्ण ने पर्वत को अपने सीधे हाथ से सिर से ऊँचा उठा लिया मानो वह पर्वत न होकर कोई पंख हो। तब श्रीकृष्ण लोगों से बोले, “जाओ, अपने परिवार, पशुओं, रिश्तेदारों को, मेरे साथ इस पर्वत के नीचे खड़ा कर दी, जब तक कि यह तूफान थम न जाये। मुझ पर विश्वास करो, तुम सभी सुरक्षित रहोगे, जैसा तुम सोच रहे हो वैसा कुछ नहीं होगा. गोवर्धन पर्वत तुम लोगो पर नहीं गिरेगा।” ऐसे आश्वासन भरे शब्द सुनकर ब्रजधाम के लोग अपनी मूल्यवान वस्तुएँ लेकर गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण लेने के लिए आ गये। सात दिनों तक लगातार मूसलाधार वर्षा होती रही। श्रीकृष्ण पर्वत को अपने हाथ की अंगुली पर लिए हुवे खड़े रहे. इस सात दिनों में ही वे न सोए और ना ही उन्होंने कुछ खाया।
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गोवर्धन को धारण करने वाला | Gowardhan Ko Dharan Karne Wala : भगवान् श्रीकृष्ण की शक्ति और लग्न को देखकर भगवान इंद्र हैरान रह गये, उनका सारा घमण्ड चूर-चूर हो गया। तब उन्होंने समवर्तक को वर्षा रोकने का आदेश दिया। वर्षा और तूफान रुकने पर कृष्ण ने सभी लोगों को वापिस उनके घर जाने को कहा। बाद में श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उसके स्थान पर सावधानी पूर्वक रख दिया। सभी लोग श्रद्धा से उनके चरण स्पर्श करने के लिए उमड़ पड़े। यशोदा, रोहिणी और नन्द सभी ने कृष्ण को प्यार और गर्व से गले लगा लिया। इसी कारण भगवान कृष्ण का नाम जो गोवर्धन पर्वत को उठा कर गोवर्धनधारी पड़ा अर्थात वह जो गोवर्धन पर्वत को उठा सके।
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