Rajasthan in Hindi
Rajasthan in Hindi : इस लेख में हम राजस्थान के इतिहास पर नज़र डालेंगे वीरभूमि राजस्थान का उल्लेख सर्वप्रथम ईसा की छठी शताब्दी के पूर्व मिलता हैं. रामायण व महाभारत काल में मरुजंगल मत्स्यप्रदेश विद्यमान थे. माना जाता हैं की राम जी ने वनवास के समय वर्तमान जयपुर में दक्षिण पूर्व की ओर से रामेश्वरम तीर्थ पर यात्रा करते हुवे एक रात का विश्राम किया था. ऐसी भी मान्यता हैं की पांडव पुष्कर में रहे और यह भी माना जाता हैं की भुल्लुर प्रदेश जो वर्तमान में अलवर हैं यहाँ के राजा ने कौरवो की ओर से युद्ध लड़ा. महाजनपद युग के अनुसार 326 ईसा पूर्व में यूनानी शासक सिकंदर महान के आक्रमण के कारण पंजाब क्षेत्र से अनेक जातियां भाग कर राजस्थान आ कर बस गयी. इनमे मालव जाति ने जयपुर के निकट बगारछल में, शिव जाति ने चितोरगढ़ के गिरी में, शाल्वो ने अलवर में और राजन्यो ने भरतपुर में अपने जनपद स्थापित किये. मौर्यों युग में राजस्थान पर मौर्या का शासक रहा. इसके प्रमाण बैराठ वर्तमान जयपुर, एवं कर्णसभा गाव वर्तमान कोटा वहां की शिलालेखो में मिलता हैं. गुप्ता युग में गुप्ता वंश के उदय से पूर्व मध्यभारत में शख वंश के सबसे प्रख्यात शासक रुद्रदामन का राज था.
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Rajasthan in Hindi : इनके जूनागढ़ अभिलेख से पता चलता हैं की इनका शासन, गुजरात, सिंध, महाराष्ट्र, उत्तरी कौन्कर्ण और राजस्थान के कुछ क्षेत्र पर भी था. 391 ईसवी में समंद्र गुप्त शख वंश के रुद्रदमन द्वितीय को हराकर दक्षिणी राजस्थान को अपने साम्राज्य में मिला दिया बाद में हर शासक तोर्मान ने 503 ईसवी में गुप्तो से राजस्थान छीन लिया परन्तु तोर्मान के पुत्र मेहर्कुल से गुप्ता शासक नैरसिंह ने पुन: राजस्थान छीन लिया तोर्मान पुत्र मेहर्कुल ने ही बडौली में शिव मंदिर का
निर्माण करवाया था. गुप्त वंश के पतन के बाद राज्य पर गुर्जर वंश का आधिपत्य हो गया जिनकी राजधानी भीममाल थी. हर्षवर्धन के पिता प्रभाकरवर्धन ने गुर्जरो से राज्य का दक्षिणी पश्चिमी हिस्से पर अपना आधिपत्य जमाया। सातवी से बारहवीं शताब्दी में उत्तर भारत में अनेक राजपूत वंश स्थापित हुवे इसी कारण यह युग राजपूत युग कहलाया। राजपूतो की उत्पत्ति का सर्वाधिक मान्य सिद्धांत याद करना कठिन हैं क्योंकि जनरल डायल्ड के अनुसार राजपूतो की उत्पत्ति शक, कुषाण तथा ठुंड जातियो से हैं.
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Rajasthan in Hindi : इतिहासकार स्मिथ के अनुसार राजपूत आदिम जातियो, गौड़, खरवार, भर आदि जातीयो वंशज हैं. राजस्थान में राजपूतो के कई वंश रहे हैं आइये इन पर एक एक कर नज़र डाले :
(क) चौहान वंश : सबसे पहले चौहान वंश पृथ्वी राज रंसूओ के अनुसार चौहान की उत्पत्ति आबू पर्वत अग्निकुंड से हुई थी. पंडित गौरी शंकर ओझा इन्हें सूर्यवंश मानते हैं. इस वंश की स्थापना सातवी शताब्दी में वासुदेव चौहान द्वारा साम्भर में की गयी थी इस वंश का प्रथम प्रतापी राजा सिद्धराज का पुत्र विघ्रराज द्वितीय था.
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Rajasthan in Hindi : जिसने चाणक्य शासक मूलराज प्रथम को पराजित कर मृगकच्छ जो वर्तमान बड़ौच में आशापुरी देवी का मंदिर बनवाया इस वंश का द्वितीय प्रतापी शासक पृथ्वीराज का पुत्र अजयराज था. जिसने 1130 ईसवी में अजमेर की स्थापना की. अजयराज के उत्तराधिकारी अर्णोराज ने अजमेर में गुप्त वंश के पतन के बाद राज्य पर गुर्जर वंश का आधिपत्य हो गया जिनकी राजधानी भीममाल थी. हर्षवर्धन के पिता प्रभाकरवर्धन ने गुर्जरो से राज्य का दक्षिणी पश्चिमी हिस्से पर अपना आधिपत्य जमाया। सातवी से बारहवीं शताब्दी में उत्तर भारत में अनेक राजपूत वंश स्थापित हुवे इसी कारण यह युग राजपूत युग कहलाया। राजपूतो की उत्पत्ति का सर्वाधिक मान्य सिद्धांत याद करना कठिन हैं क्योंकि जनरल डायल्ड के अनुसार राजपूतो की उत्पत्ति शक,
कुषाण तथा ठुंड जातियो से हैं. इतिहासकार स्मिथ के अनुसार राजपूत आदिम जातियो, गौड़, खरवार, भर आदि जातीयो वंशज हैं. राजस्थान में राजपूतो के कई वंश रहे हैं आइये इन पर एक एक कर नज़र डाले :
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(क) चौहान वंश : सबसे पहले चौहान वंश पृथ्वीराज रंसूओ के अनुसार चौहान की उत्पत्ति आबू पर्वत अग्निकुंड से हुई थी. पंडित गौरी शंकर ओझा इन्हें सूर्यवंश मानते हैं. इस वंश की स्थापना सातवी शताब्दी में वासुदेव चौहान द्वारा साम्भर में की गयी थी इस वंश का प्रथम प्रतापी राजा सिद्धराज का पुत्र विघ्रराज द्वितीय था. जिसने चाणक्य शासक मूलराज प्रथम को पराजित कर मृगकच्छ जो वर्तमान बड़ौच में आशापुरी देवी का मंदिर बनवाया इस वंश का द्वितीय प्रतापी शासक पृथ्वीराज का पुत्र अजयराज था. जिसने 1130 ईसवी में अजमेर की स्थापना की. अजयराज के उत्तराधिकारी अर्णोराज ने
अजमेर में आनासागर झील का निर्माण करवाया.
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Rajasthan in Hindi : अर्णोराज ने ही पुष्कर में वराहा मंदिर का निर्माण करवाया। अर्णोराज का पुत्र विघरौराज चतुर अथवा बीसलदेव चौहान वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था. ये एक विजेता सम्राट होने के साथ – साथ कवि एवम लेखक भी था. इसने संस्कृत में हेरि केलि नाटक की रचना की. इनके दरबार में कभी सोमनाथ ने ललितविग्रह राज नाटक की रचना की. इनके शासन काल को चौहान वंश का स्वर्ण युग कहा जाता हैं. इसकी बहुत महत्वपूर्ण घटना 1191 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच तराइन का प्रथम युद्ध हुआ जिसमे गौरी की हार हुई. 1192 ईसवी में पुनः मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच युद्ध हुआ लेकिन इसमें पृथ्वीराज चौहान की हार हुई.
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गहलोत या गुहिल वंश :
राजस्थान के इतिहास में सुप्रसिद्ध इस वंश की स्थापना 566 ईसवी में गुहिल ने मेवाड़ में की थी. इस वंश का प्रथम प्रतापी शासक महेंद्र द्वितीय का पुत्र बप्पा रावल था जिन्होंने 734 से 753 ईसवी तक शासन किया बप्पा रावल ने 734 ईसवी से चितोड़गढ़ दुर्ग पर मौर्यवंशी राजा मानसिंह को हराया इस समयमेवाड़ की राजधानी नागदा थी.
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Rajasthan in Hindi : बप्पा रावल के वशज अल्लर के शासनकाल में अलार्ड में खूब उनत्ति हुई. इन्होंने मेवाड़ में सबसे पहले नौकरशाही की स्थापना की तथा आहडं को अपनी दूसरी राजधानी बनाया इसकी बहुत महत्वपूर्ण घटना रावल रतनसिंह के शासनकाल में अलाउदीन खिलजी का चितोड़गढ़ के 1330 ईसवी में आक्रमण रही. इसमें रावल रतनसिंह सहित गौरव और बादल ने साका किया तथा रानी रक्वी ने जौहर कर अपने सतीत्व की रक्षा की. मालिक मोहम्मद जुराइसी की पदमावत के अनुसार ये आक्रमण राणा रंतनसिंघ की रूपवती पत्नी रानी पदमिनी को प्राप्त करने के लिए किया गया था. चितोड़ विजय उपरांत अलाउदीन ने इस किले का नाम अपने पुत्र के नाम पर खजराउडीन रख दिया। 1326 ईसवी में सिसोदिया ग्राम के राणा हमीर ने चितोड़गढ़ पर अधिकार जमा कोहिल वंश की शाखा की नींव डाली.
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Rajasthan in Hindi : तभी से मेवाड़ के शासक महाराणा कहलाने लगे. महाराणा हमीर के पौत्र महाराणा लाखा का विवाह मण्डौर की राठौर राजकुमारी हंसाबाई के साथ हुआ था. महाराणा ज्येष्ठ पुत्र चूड़ा ने हंसाबाई से होने वाली संतान के पक्ष में मेवाड़ का राज सिंघासन छोड़ दिया अपनी इस भीष्म
प्रतिज्ञा के कारण इन्हें मेवाड़ का भीष्म भी कहा जाता हैं. मेवाड़ के प्रातापी शासक इसके बाद सन 1709 ईसवी में महाराणा सांगवा हुवे. इन्होने दिल्ली के सुलतान इब्राहिम लोह्दी को पहले खतौनी के युद्ध में और फिर धौलपुर के युद्ध में हराया. 1527 में मुगुल शासक बाबर से खंबा के युद्ध में इन्हें पराजय का
सामना करना पड़ा जिसके बाद राणा सांगा को विष देकर मार दिया गया. इसके बाद प्रतापी शासक सन 1572 ईसवी में महाराणा प्रताप हुवे. इनका जन्म 9 मई 1540 को कुम्बल्गढ़ में हुआ था.
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Rajasthan in Hindi : मुगुल बादशाह अकबर ने महाराणा प्रताप को अपनी आधीनता स्वीकार करवाने के लिए जलाल्खन, मानसिंह, भाग्वान्न्दास और तोदल्मल को अपने प्रतिनिधि के तौर पर भेजा था पर महाराणा प्रताप ने इसको स्वीकार नहीं किया अंत: 1576 में मानसिंह और महाराणा प्रताप की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ जिसमे अकबर की सेना विजयी रही और महाराणा प्रताप की सेना को जंगलो में भागना पड़ा. इसके बाद आए राणाओ ने मुगुलो के साथ संधि कर ली और मुगुलो ने अंग्रेजो के साथ और इस तरह से 1000 वर्षो बाद मेवाड़ की स्वतंत्रता का अंत हुआ.
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राठोड वंश :
अब एक नज़र राठोड वंश पर. राठोड़ो की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक मत प्रचलित हैं. कुछ इतिहासकार राठोड शब्द की उत्पत्ति राष्ट्रकूट से मानते हैं. जो दक्षिण भारत की एक जाति थी. इनकी उत्पत्ति कनौज के शासक गढ़वाल वंश के जैचंद से भी मानी जाती हैं. मारवाड़ के राठोड वंश के संस्थापक एक अभादी पुरुष राव सिन्हा रहे जिन्होंने तेरहवी शताब्दी में इस वंश की स्थापना की. इस वंश के प्रथम प्रतापी शासक राव चुडा सिंह हुवे जिन्होंने मांडू सूबेदार से मंडोर दुर्ग छीन कर अपनी राजधानी की स्थापाना की.
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Rajasthan in Hindi : इनका ज्येस्थ्पुत्र रणमल मेवाड़ के महाराणा लाखा की सेवा में चला गया इनकी बहन हंसाबाई का विवाह महाराणा लाखा से हुआ. रणमल की हत्या महाराणा कुम्हा ने करवा दी रणमल के पुत्र राव चौदह ने 1453 ईसवी में मंडोर एवं आस पास क्षेत्र छीन कर अपना राज्य स्थापित किया तथा चिरियाकुट पहाड़ी पर मेहरानगढ़ का निर्माण करवाया. राव जोधा ने ही जोधपुर शहर बसाया इनकी मृत्यु 1479 में हुई इनके बाद शासको की सीधी मुठभेड़ मुगुलो से हुई जिसमे या तो इन्हें हार का सामना करना पड़ा या संधि कर समझौता करना पड़ा अकबर, जहाँगीर और औरंगजेब सभी की अधीनता में राजस्थान के राव और महारानाओ ने शासन किया.
Rajasthan in Hindi : 1707 ईसवी में औरंगजेब की मृत्यु के बाद सब संधियाँ ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ होने लगी और इस तरह से राठोड वंश की हुकूमत पर अंकुश लगा.
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कच्छवाह वंश :
अब एक नज़र कच्छवाह वंश पर यह वंश स्वयं को श्री राम का पुत्र कुश का वंशज मानता हैं इस वंशह की स्थापना दुलेह – राय ने 1137 ईसवी में रामगढ के मीनाओ और बाद में डोसा के बड गुजुरो को हरा कर की थी इस वंश के पृथ्वीराज ने खानवा के महाराणा सांगा की ओर से भाग लिया था इस वंश के भारमल
ने 1547 ईसवी में आमेर की गद्दी संभाली थी. यह राजपुताना ने मुगुलो के साथ वैवाहिक सम्बन्ध करने वाले पहले शासक थे. इनकी मृत्यु के बाद राजा भाग्वान्त्दास आमेर के शासक बने. इन्होने अपनी पुत्री का विवाह शेह्जादे सलीम के साथ करवाया 1579 ईसवी में इनकी मृत्यु के बाद राजा मानसिंह प्रथम ने
अजमेर का शासन संभाला. मानसिंह अकबर के अत्यधिक विश्वशनीय सेवा नायक थे. हल्दीघाटी का युद्ध अकबर ने मानसिंह के सेनापतित्व में ही जीता था इनके बाद मरीजा राजा जय सिंह हुवे इन्हें मिर्ज़ा की उपाधि शाहजहाँ ने दी. इन्होने शिवाजी के विरुद्ध अभियान कर औरंगजेब से पुरंदर की संधि करने के लिए मजबूर कर दिया था
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