भगवान हमारी मदद स्वयं क्यों करते है।
एक दिन अकबर ने बीरबल से पूछा “बीरबल, हिन्दू भगवान अर्थात् देवता अनोखा व्यवहार क्यों करते हैं।” बादशाह द्वारा किए गए प्रश्न को सुनकर बीरबल भौचक्का रह गया। उसने सोचा, “हमारे राजा तो हिन्दू तथा मुस्लिम धर्म की समान इज्जत करते हैं। ऐसा प्रश्न पूछकर हो सकता है वे मुझे चिढ़ाना चाहते हों।” बादशाह अकबर ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा, “भगवान कृष्ण इसके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। क्या भगवान कृष्ण के पास कोई सेवक नहीं है? जब भी कोई भक्त उन्हें सहायता के लिए बुलाता है, तो वे स्वयं ही उसे देखने चल पड़ते हैं। उन्हें इस काम के लिए किसी को रख लेना चाहिए?” “हाँ जरूर, उन्हें ऐसा करना चाहिए।” बीरबल ने जवाब दिया। परंतु बादशाह को व्यवहारिक रूप में समझाने के लिए उसके मस्तिष्क में योजना आ गई। बीरबल जानता था कि बादशाह अकबर अपने पोते खुर्रम को बहुत प्यार करते हैं। बीरबल ने एक मूर्तिकार को राजकुमार खुर्रम जैसी मोम की एक मूर्ति बनाने को कहा। जब मूर्ति तैयार हो गई तब बीरबल ने खुर्रम के संरक्षक को बुलाया और कहा “इस मूर्ति को ले जाओ और इसे राजकुमार के वस्त्र आदि आभूषण से सजा दो तथा इसे शाही बगीचे की झील के किनारे ले जाओ। मेरा इशारा पाते ही मूर्ति को पानी में फेंक देना और ऐसे दर्शाना जैसे राजकुमार फिसलकर झील में गिर गये हों।” राजकुमार का संरक्षक मान गया।
Also Read : यकीनशाह का स्मारक
शाम को बीरबल, बादशाह अकबर के साथ शाही बगीचे में आया। बीरबल का इशारा पाते ही संरक्षक ने मोम की मूर्ति को गहरी झील में फेंक दिया। खुर्रम को झील में गिरते देखकर बादशाह अकबर घबरा गए और बिना एक पल की देर किए वे तुरंत अपने पोते को बचाने के लिए झील में कूद पड़े। बड़ी कठिनाई से वे डूबती-उतराती खुर्रम की मूर्ति को पकड़ पाए। उस अवाक् और चेतना शून्य मूर्ति को देखकर पहले तो बादशाह अकबर यह सोचकर घबरा गए कि ‘खुर्रम के प्राण-पखेरू उड़ चुके हैं, लेकिन थोड़ी देर बाद उन्हें एहसास हुआ कि यह तो केवल मोम की मूर्ति है। जब बादशाह अकबर झील से बाहर आए तो बीरबल ने कहा “महाराज! आपने अपने पोते को बचाने के लिए इतनी ठण्डी झील में छलांग क्यों लगाई ? आपके तो कई संरक्षक तथा सेवक यहाँ मौजूद हैं।” “यह ठीक है कि मेरे पास सैंकड़ों संरक्षक तथा सेवक हैं, परंतु मेरा पोता मेरे लिए अधिक मूल्यवान है, इसलिए मैं अपने आपको नहीं रोक सका।” अकबर ने जवाब दिया। “महाराज! अब तो आपको ज्ञात हो गया होगा कि मुसीबत पड़ने पर अगर कोई भक्त भगवान कृष्ण को याद करता है, तो असंख्य सेवक और संरक्षक होने के बावजूद भी वे स्वयं ही उसकी सहायता के लिए क्यों दौड़ पड़ते हैं? वे अपने भक्तों को प्यार करते हैं। इसलिए उनकी सहायता के लिए वे स्वयं दौड़ पड़ते हैं।” बीरबल ने कहा। “हमेशा की तरह मैं आज भी तुम्हारी बात स्वीकारता हूँ बीरबल।” बादशाह अकबर मुस्कुराए और वहाँ से चले गए।
और कहानियों के लिए देखें : Akbar Birbal Stories in Hindi